योग और राजनीति: साधना या राजनीतिक एजेंडा? योग, जो प्राचीन भारतीय दर्शन और संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है, हाल के वर्षों में राजनीति के क्षेत्र में भी प्रमुखता से उभरा है। एक ओर योग को मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शांति प्राप्त करने का साधन माना जाता है, वहीं दूसरी ओर इसे अब राजनीति के विभिन्न आयामों में भी देखा जाने लगा है। खासकर भारत में, योग केवल व्यक्तिगत साधना तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसे राजनीतिक शक्ति, सांस्कृतिक पुनरुद्धार और कूटनीतिक प्रभाव के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
योग का राजनीतिकरण तब से चर्चा में आया जब 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की पहल की। 21 जून को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मान्यता मिलना भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत साबित हुआ। इसके बाद से योग केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य या अध्यात्म का विषय नहीं रहा, बल्कि इसे वैश्विक राजनीति में भारत की सॉफ्ट पावर के रूप में देखा जाने लगा।
राजनीति में योग का उपयोग
भारत में योग का राजनीतिकरण कई स्तरों पर देखा जा सकता है:
- सांस्कृतिक पुनरुद्धार: योग को भारतीय संस्कृति की धरोहर के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे इसे राष्ट्रीय पहचान और गर्व से जोड़ा गया है। राजनीतिक दलों द्वारा इसे भारतीयता के प्रतीक के रूप में प्रचारित किया जाता है, जिससे यह सांस्कृतिक एजेंडे का हिस्सा बन गया है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण: योग को अक्सर हिंदू धर्म से जोड़ा जाता है, क्योंकि इसकी जड़ें वेदों और उपनिषदों में पाई जाती हैं। इस कारण से, कुछ आलोचक योग के बढ़ते राजनीतिकरण को धार्मिक ध्रुवीकरण का माध्यम मानते हैं। इसके माध्यम से राजनीति में धार्मिक एजेंडा चलाने के आरोप भी लगते रहे हैं, खासकर उन राजनीतिक दलों पर जो हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देते हैं।
- स्वास्थ्य और कल्याण नीतियाँ: योग को राजनीति में सकारात्मक रूप से भी देखा जा सकता है, खासकर स्वास्थ्य और कल्याण नीतियों के संदर्भ में। कई सरकारी योजनाओं में योग को शामिल किया गया है ताकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जा सके। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कई बार योग को सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति का हिस्सा बनाया है, और इसे एक स्वस्थ जीवनशैली के रूप में प्रचारित किया है।
- वैश्विक राजनीति में भारत की सॉफ्ट पावर: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस ने न केवल भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर मजबूत किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि कैसे योग एक सॉफ्ट पावर के रूप में भारत की कूटनीति का हिस्सा बन सकता है। योग के माध्यम से भारत ने एक सकारात्मक और शांतिपूर्ण छवि प्रस्तुत की है, जिसे विश्व स्तर पर सराहा गया है।
योग का राजनीति में प्रवेश निस्संदेह कई विवादों को भी जन्म देता है। कुछ आलोचक मानते हैं कि योग का राजनीतिकरण इसे उसके मूल उद्देश्यों से भटका रहा है। योग, जो व्यक्तिगत शांति और आत्मिक विकास का साधन है, उसे राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग करना उसके आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का हनन कर सकता है।
इसके अलावा, योग को धार्मिक संदर्भों में प्रस्तुत करने से समाज में ध्रुवीकरण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कुछ धर्मनिरपेक्ष संगठनों ने भी इस पर सवाल उठाए हैं कि क्या योग का राजनीतिक मंच पर उपयोग धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता।
निष्कर्ष
योग का राजनीति में प्रवेश, चाहे वह सांस्कृतिक पुनरुद्धार के रूप में हो या वैश्विक कूटनीति के रूप में, एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। हालांकि, योग के मूल उद्देश्यों – शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन – को बनाए रखना आवश्यक है। योग को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में उपयोग करना उसके गहरे आध्यात्मिक और सार्वभौमिक महत्व को कमजोर कर सकता है। इसलिए, जरूरी है कि योग का उपयोग राजनीति में सावधानीपूर्वक और संतुलन के साथ किया जाए, ताकि इसके वास्तविक लाभों से समाज वंचित न हो।
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